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Kaha hai prakriti – a Hindi Poem by Yasin Shaikh

काहा है प्रकृति?
थमा हूआ पानी है  प्रकृति,
या निरंतर बेहती हुई नदी है प्रकृति,
एक जंगल का गेहरा घना साया है प्रकृति,
या निला खुला आसमान है प्रकृति…
एक बंद कमरे में बसी हवा कि खामोशी है प्रकृति,
या पर्वत के ऊंचाई पे बसे भवर का शोर है प्रकृति।
तोह सुनो वो है प्रकृति
जिस से तुम जाने अंजाने में तबाह कर रहे हो ….
खुद की बेमतलब जिंदगी में मतलब ढुंढ रहे वोह है प्रकृति,
इस तबाही को जो झेल रही है वो है प्रकृति,
जिस से तुम्हारा “में” बना है वो है प्रकृति,
जिस के बिना कुछ न था न हैं न होगा
वो है प्रकृति।
जिस के बिना आंखों को सुकून न मिले…
बदन को थंडक न मिले…
कानों में मधुरता न बसे…
रंगों में खुशबू न दौड़े वो है…
प्रकृति।

By Yasin Shaikh

Poet| Marketeer| Social Media Enthusiast

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